एनएल चर्चा 65: साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से बीजेपी का टिकट, जूलियन असांज की गिरफ़्तारी और अन्य

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बीते हफ़्ते राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर घटित हुई घटनाओं ने कई मायनों में नयी बहस को जन्म दिया. चर्चा में इस हफ़्ते उन्हीं में से तीन बेहद ज़रूरी विषयों- जेट एयरवेज़ की उड़ानें बंद होने व हज़ारों की तादाद में लोगों के बेरोज़गार होने, विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज की इक्वाडोर के लंदन स्थित दूतावास से गिरफ़्तारी और भाजपा द्वारा तमाम आतंकवादी गतिविधियों में सह-अभियुक्त रही साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को 2019 के लोकसभा चुनावों में भोपाल से टिकट दिये जाने पर विस्तार से बातचीत की गयी.चर्चा में इस बार ‘प्रभात ख़बर-दिल्ली’ के ब्यूरो चीफ़ प्रकाश के रे ने शिरकत की. साथ ही चर्चा में लेखक-पत्रकार अनिल यादव भी शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.भारतीय जनता पार्टी द्वारा साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल से टिकट दिये जाने के बाद एक बार फिर देश में उग्र हिंदुत्व की राजनीति ने जोर पकड़ लिया है. साध्वी प्रज्ञा सिंह ने 2019 के लोकसभा चुनावों को धर्मयुद्ध करार दिया है. साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के बयानों के बाद अब धार्मिक भावनाओं के आधार की जाने वाली राजनीति तेज़ हो गयी है, जिसमें देशभक्ति का भी फ़्लेवर पड़ गया है. इसी मुद्दे से चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल ने सवाल किया कि जिस तरह की उनकी छवि है व जिस तरह के उनपर आरोप हैं, उसके बाद उन्हें या उन जैसे किसी व्यक्ति के उम्मीदवार बनाये जाने के कुछ मक़सद होते हैं. ध्रुवीकरण होता है और जीत की संभावनाएं ऐसे में बढ़ जाती हैं. और जबकि भोपाल की सीट भाजपा के लिये सालों से सुरक्षित सीट रही है, तो पार्टी द्वारा ऐसे किसी उम्मीदवार के ऊपर दांव लगाने के पीछे क्या मक़सद हो सकता है?जवाब देते हुये प्रकाश कहते हैं- “उनको खड़ा करने के पीछे जो मक़सद है, उसपर बात करने के पहले हमें यह देखना चाहिए कि उनकी उम्मीदवारी के तकनीकी या कानूनी पहलू क्या हैं. एक समय स्वास्थ्य के आधार पर लालू प्रसाद यादव जमानत की अर्ज़ी दाख़िल करते हैं, तो उनकी अर्ज़ी खारिज़ कर दी जाती है और यहां स्वास्थ्य के नाम पर एक व्यक्ति जमानत पर बाहर है और वह जमानत भी अपने आप में सवालों के घेरे में है. एक और मामला हार्दिक पटेल का भी है, जिन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी गयी. तो प्रज्ञा ठाकुर के मामले में यह एक बड़ा सवाल है और इसमें चुनाव आयोग के काम-काज पर भी सवालिया निशान है. मुझे लगता है कि आने वाले वक़्त में जब इन सब के कानूनी पहलुओं पर बहस होगी, उनका विश्लेषण किया जायेगा तब अदालतों को भी इसमें क्लीनचिट नहीं दी जा सकती है.”प्रकाश ने आगे कहा- “मुझे लगता है कि इस कैंडिडेचर के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की साफ़-साफ़ घोषणा है कि अब हम उस मुक़ाम पर खड़े हैं, जहां हमें पर्दादारी की बहुत ज़रूरत नहीं है.”इसके साथ-साथ बाक़ी विषयों पर भी चर्चा के दौरान विस्तार से बातचीत हुई. बाकी विषयों पर पैनल की राय जानने-सुनने के लिए पूरी चर्चा सुनें. Hosted on Acast. See acast.com/privacy for more information.

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